रचना के पापा, जगदीश जी, उसे बहुत प्यार करते थे। वहीं, उसकी मां गीता उस पर जान छिड़कती थीं। उनके घर में कई नौकर थे, जो दिन-रात सफाई, खाना बनाना और अन्य काम करते थे।
एक दिन रचना अपने मम्मी-पापा के साथ घूमने जा रही थी। कार की पिछली सीट पर बैठकर, वह बाहर के नज़ारे देख रही थी। बाहर बारिश हो रही थी। रचना ने देखा एक छोटा लड़का सड़क किनारे अपनी बहन को गोद में बिठाकर खुद को और अपनी बहन को तिरपाल से ढकने की कोशिश कर रहा था। लेकिन तेज हवा के कारण दोनों ही भीग रहे थे।
रचना: “मम्मी, देखो वो दोनों बेचारे कैसे भीग रहे हैं।”
गीता जी: “हाँ, बेटा, वे गरीब लोग हैं; यही उनका ठिकाना है।”
रचना: “लेकिन मम्मी, ऐसा क्यों? हमारे पास तो इतना बड़ा घर है, कई कारें हैं, और इनके पास सर छिपाने के लिए कुछ भी नहीं।”
गीता जी: “बेटी, ये सब उनकी किस्मत से मिला है, और हमें जो मिला है, वो हमारी किस्मत से मिला है।”
रचना: “मम्मी, ये किस्मत क्या होती है? और ये सब कुछ बांटने में कंजूसी क्यों करती है?”
रचना की बात सुनकर गीता जी और जगदीश जी दोनों हंस पड़े।
गीता जी: “नहीं, बेटा, ऐसा नहीं कहते। सब कुछ ईश्वर हमें देते हैं। किसी को कम, किसी को ज्यादा।”