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बलिदान: मुंशी प्रेमचंद्र की एक रोचक कहानी

by Devindaily
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आर्थिक अवस्था का प्रभाव व्यक्ति के नाम पर
मनुष्य की आर्थिक अवस्था का सबसे ज्यादा असर उसके नाम पर पड़ता है। मौजे बेला के मँगरू ठाकुर जब से कॉन्स्टेबल हो गए हैं, उनका नाम मंगलसिंह हो गया है। अब कोई उन्हें मंगरू कहने का साहस नहीं करता। वहीं कल्लू अहीर, जो हलके के थानेदार साहब से मित्रता कर मुखिया बन गया है, अब कालिकादीन कहलाता है। उसे भी अब कोई कल्लू कहने की हिम्मत नहीं करता।

अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव
हरखचन्द्र कुरमी, जिन्हें अब हरखू के नाम से जाना जाता है, बीस साल पहले समृद्ध हुआ करते थे। उनके पास शक्कर का कारोबार था और कई हल की खेती थी। परंतु विदेशी शक्कर की आमद ने उनका व्यापार बर्बाद कर दिया। धीरे-धीरे सबकुछ टूट गया और अब वे 70 साल के बूढ़े हो गए हैं, जो सिर पर टोकरी लेकर खाद डालने जाते हैं। बावजूद इसके, उनके चेहरे पर अब भी गंभीरता और स्वाभिमान झलकता है। उनके पास अब मात्र पाँच बीघा जमीन और दो बैल ही बचे हैं।

सम्मान और स्वाभिमान
पंचायतों में अब भी हरखू की राय को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। गाँव के अनपढ़ लोग उनके सामने मुँह नहीं खोलते। हालांकि उनके पास पहले की तरह संसाधन नहीं हैं, पर उनके चरित्र पर अच्छे दिनों का प्रभाव अब भी दिखाई देता है।

बीमारी और लापरवाही
हरखू ने अपने जीवन में कभी दवा नहीं खायी थी। मलेरिया जैसी बीमारियों में भी वे बिना दवा के ठीक हो जाते थे। इस साल जब वे बीमार पड़े, तो उन्होंने सोचा कि बिना दवा के ही ठीक हो जाएंगे। परंतु इस बार बीमारी मौत का संदेश लेकर आई थी। उन्होंने महीनों तक दवा नहीं ली, और जब ली, तो भी इलाज में लापरवाही बरती गई। कोई भी उन्हें दवा लाकर नहीं देता, चाहे वह मंगलसिंह हो या कालिकादीन। हरखू का स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता गया और पाँच महीने बाद उन्होंने होली के दिन अंतिम साँस ली।

खेतों का संघर्ष
हरखू की मृत्यु के बाद, गाँववालों की नजरें उनके खेतों पर थीं। गिरधारी, जो हरखू का बेटा था, क्रिया-कर्म में व्यस्त था, जबकि गाँव के किसान उनके खेतों पर अधिकार जमाने की कोशिश कर रहे थे। अंततः ओंकारनाथ ने फैसला किया कि गिरधारी को उसके पिता की जमीन मिलनी चाहिए, परंतु उसे नजराने के पैसे देने पड़ेंगे। गिरधारी के पास इतने पैसे नहीं थे, जिससे वह ओंकारनाथ की शर्तें पूरी कर सके।

दुख और विदाई
गिरधारी ने अपनी सारी उम्मीदें अपने बैलों से जोड़ रखी थीं। जब बैल भी बिक गए, तो वह फूट-फूटकर रो पड़ा। उसके जीवन की आखिरी आशा भी छिन गई। जब बैल बिक गए, तो गिरधारी के जीवन में अंधकार छा गया। अब वह बिना किसी साधन के रह गया था। उसकी पत्नी सुभागी और छोटा बेटा भी दुखी थे। अंततः, गिरधारी घर से गायब हो गया, और गाँववालों के प्रयासों के बावजूद उसका कोई पता नहीं चला।

अंतिम निराशा
गिरधारी की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती गई। वह न तो जमीन बचा सका और न ही बैल। उसकी सारी मेहनत और उम्मीदें टूट गईं।

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