“बनारस के गंगा घाट पर तीन दिवसीय ‘संगीत परिसंवाद’ का आयोजन होने जा रहा है।”

संगीत श्रवणम् : सहृदय मधुरम

भारतीय-परंपरा में यह कथा सर्वविदित है कि संगीत की उत्पत्ति, वेदों के निर्माता ब्रह्मा द्वारा हुई। ब्रह्मा ने यह कला शिव को दी और शिव द्वारा यह विद्या सरस्वती को प्राप्त हुई। इसलिए सरस्वती को ‘वीणा पुस्तक धारिणी’ कहकर संगीत और साहित्य की अधिष्ठात्री माना गया है।

सुरति कला का ज्ञान नारद को सरस्वती से हुआ, उसी ने स्वर्ग के गंधर्व, किन्नर और अप्सराओं को संगीत की शिक्षा दी। वहीं से नारद और भरत, ऋषि हनुमान आदि इस भू-लोक पर शास्त्रों में पारंगत होकर इस कला के प्रचारार्थ संगीत कला से परिपूर्ण विस्तार से अंतः अवतीर्ण हुए ।

भारतीय-परंपरा में संगीत ईश्वर प्रदत है। यहाँ संगीत—प्रकृति और लोक-जीवन से सतत जुड़ा रहा है। भारत में प्रत्येक ऋतु का अपना संगीत है, दिन में प्रत्येक पहर का भी संगीत है, मनुष्य के विभिन्न भावों पर आधारित संगीत है, जीवन के प्रत्येक उत्सव का अपना एक भिन्न संगीत है, प्रत्येक प्रान्त या क्षेत्र की अपनी संगीत की विशिष्ठ लोक-परंपरा रही है।

यह संसार भारतीय संगीत, कुछ ऐसा है कि इसको समझने के लिए एक जीवन की जरूरत नहीं क्योंकि, यह अनंत गहराई का एक सागर और भी है। ठीक उसी प्रकार से सहज अनुभव होता है कि हम कहीं से गहरे से इससे जुड़े हैं। विशेषकर ऐसा भी तब होता है जब आपका कोई संबंध भारतीय संगीत की गहराइयों से नहीं भी हो।

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