एक गुप्त समझौता, प्रभावी धर्म और तेल से भरपूर जमीन… ये हैं वो कारण जिनसे मध्य पूर्व सदियों से सुलग रहा है।

अगर दुनिया के नक्शे पर शतरंज की बिसात बिछाने की बात हो, तो मिडिल ईस्ट से बेहतर कोई जगह नहीं होगी। यह क्षेत्र एक गुप्त समझौते से अस्तित्व में आया और इसके भीतर 17 देश बसे हैं। उत्तर में ब्लैक सी से दक्षिण में अरब सागर तक, और पश्चिम में भूमध्यसागर से लेकर पूर्व में ईरान की पहाड़ियों तक फैला यह इलाका 72 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। आज मिडिल ईस्ट कई मोर्चों पर जंग लड़ रहा है और जिस स्थिति में यह खड़ा है, वहां से एक बड़े युद्ध की आहट स्पष्ट सुनाई दे रही है।

इतिहास के पन्नों में झांकें, तो मिडिल ईस्ट का वर्तमान जितना अशांत है, इसका अतीत भी उतना ही स्याह और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। यहां लगभग छह सदियों तक तुर्की के शक्तिशाली ऑटोमन साम्राज्य (उस्मानिया सल्तनत) का शासन था, जिसने 13वीं सदी से 19वीं सदी तक पूरे मिडिल ईस्ट से लेकर उत्तरी अफ्रीका तक अपना प्रभुत्व बनाए रखा। उस दौर में इस क्षेत्र की आबादी बेहद विविध थी, जिसमें यहूदी, मुस्लिम, ईसाई, अरब, कुर्द और फारसी सभी शामिल थे।

लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत में समय ने करवट ली, और ऑटोमन साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। वहीं, दूसरी ओर, ब्रिटिश साम्राज्य अपनी ताकत बढ़ा रहा था और मिडिल ईस्ट के ज्यादातर क्षेत्र या तो ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गए या फिर फ्रांस के नियंत्रण में आ गए। इस बदलाव ने मिडिल ईस्ट की सीमाओं और राजनीतिक संरचना को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया।

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