प्रेमचंद की मशहूर और बेहतरीन कहानियाँ
कफ़न
एक झोंपड़ी के बाहर, बाप और बेटा दोनों एक बुझते हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे थे। अंदर, बेटे की जवान पत्नी बुधिया प्रसव-वेदना में तड़प रही थी। उसकी कराहें दिल दहलाने वाली थीं, जिसे सुनकर दोनों का कलेजा थम जाता था।
यह एक ठंडी सर्दी की रात थी। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था और पूरा गाँव अंधकार में डूबा हुआ था। घीसू ने कहा, “लगता है, वो बचने वाली नहीं है। सारा दिन दौड़-धूप हो गई, जा, देख तो आ।”
माधव चिढ़कर बोला, “मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती? जाकर देख कर भी क्या होगा?”
घीसू ने ताने देते हुए कहा, “तू बड़ा बेदर्द है बे! साल भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई कर रहा है?”
माधव ने जवाब दिया, “मुझसे उसका तड़पना और हाथ-पांव पटकना देखा नहीं जाता।”
घीसू ने कहा, “मेरी बीवी जब मरी थी, तो तीन दिन तक उसके पास से हिला तक नहीं था! अब उससे लाज भी कैसी? जिसका कभी मुँह नहीं देखा, आज उसका उघड़ा बदन देखूँ! उसे तन का होश भी कहाँ होगा? मुझे देख लेगी तो ठीक से हाथ-पाँव भी न पटक सकेगी!”
माधव ने चिंता जताते हुए कहा, “मैं सोच रहा हूँ, अगर बच्चा हो गया तो क्या करेंगे? घर में सोंठ, गुड़, तेल कुछ भी तो नहीं है।”
घीसू ने लापरवाही से कहा, “भगवान दें तो सब कुछ हो जाएगा। अभी जो लोग एक पैसा नहीं दे रहे हैं, वे ही कल बुलाकर रुपए देंगे। मेरे नौ बच्चे हुए, घर में कभी कुछ नहीं था, लेकिन भगवान ने किसी न किसी तरह सब ठीक कर दिया।”