पहला दृश्य: एक बूढ़े पिता की पीड़ा
संध्या का समय था, और डॉक्टर चड्ढा गोल्फ़ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। जैसे ही वह बाहर निकले, उन्होंने देखा कि दो कहार एक डोली लिए औषधालय के सामने खड़े थे। डोली के पीछे एक बूढ़ा व्यक्ति लाठी टेकते हुए धीरे-धीरे चला आ रहा था। डॉक्टर चड्ढा के सामने आते ही बूढ़े ने चिक से झाँका और साहस जुटाकर डॉक्टर साहब से बात करने की कोशिश की।
बूढ़े का विनम्र निवेदन
डॉक्टर साहब को देखकर बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा, “हुज़ूर, बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिन से बीमार है।”
डॉक्टर चड्ढा ने सिगार जलाते हुए उसे डांटते हुए कहा, “कल सुबह आओ। अभी हमारा समय खेलने का है।”
बूढ़े ने घुटने टेककर ज़मीन पर सिर रख दिया और कहा, “हुज़ूर, लड़का मर जाएगा, बस एक निगाह देख लें, दीनबंधु! यही एक बचा है, सात लड़कों में से। हम दोनों आदमी रो-रोकर मर जाएँगे, सरकार!”
डॉक्टर का कठोर निर्णय
लेकिन डॉक्टर साहब ने उसकी एक न सुनी। वे बिना पीछे मुड़े अपनी मोटर में बैठ गए और बोले, “कल सुबह आना।”
मोटर चली गई, और बूढ़ा वहीँ खड़ा रह गया। उसकी आँखों से मोटर के जाते हुए दृश्य को टकटकी लगाए देखता रहा। शायद उसे अब भी डॉक्टर साहब के लौट आने की उम्मीद थी। लेकिन उसकी आशा टूट गई, और वह निराश होकर लौट गया।
दूसरा दृश्य: बालक की मृत्यु
उसी रात को बूढ़े का सात साल का इकलौता बालक, जो उसकी सारी जीवन-शक्ति का आधार था, इस दुनिया को छोड़ गया। बूढ़े माँ-बाप के जीवन की सारी खुशियाँ उसी बालक के साथ चली गईं। अब उनके जीवन का कोई आधार नहीं बचा था। वे अंधकार में डूबे हुए, टूटे हुए दिल से रोने लगे।
तीसरा दृश्य: डॉक्टर चड्ढा का जीवन
कई साल बीत गए। डॉक्टर चड्ढा ने अपने जीवन में खूब यश और धन कमाया, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने स्वास्थ्य की भी अच्छे से देखभाल की। उनकी जीवनशैली का नियमित पालन ही उनके स्फूर्ति और चुस्ती का कारण था। अब वे 50 वर्ष की उम्र में भी युवाओं से अधिक ऊर्जावान थे।
उनकी एक बेटी और एक बेटा था। बेटी का विवाह हो चुका था, और बेटा, कैलाश, कॉलेज में पढ़ता था। आज कैलाश की बीसवीं सालगिरह थी। घर में उत्सव का माहौल था। शहर के रईस और कॉलेज के छात्र आमोद-प्रमोद में लगे थे।
चौथा दृश्य: कैलाश का साँपों का शौक
कैलाश को साँप पालने और उनके स्वभाव की परीक्षा करने का शौक था। एक बार उसने स्कूल में साँपों पर व्याख्यान भी दिया था, जिससे सभी प्रभावित हो गए थे। उसकी सहपाठी और प्रेमिका मृणालिनी उसे साँपों का तमाशा दिखाने का आग्रह कर रही थी। कैलाश ने इंकार किया, लेकिन उसके दोस्तों ने उसे छेड़ा और उकसाया, जिससे वह अपनी बात पर अड़ गया।
पाँचवाँ दृश्य: साँप का दंश
कैलाश ने अपने सबसे ज़हरीले साँप को दिखाने का निर्णय लिया। उसने साँप की गर्दन दबाकर उसके दाँत दिखाने की कोशिश की। अचानक, साँप ने कैलाश की उँगली में ज़ोर से काट लिया। कैलाश ने अपनी उँगली कसकर पकड़ ली और दौड़ता हुआ अपने कमरे की तरफ़ गया। वहाँ उसने एक जड़ी निकाली, जिसे वह विष का इलाज मानता था।
लेकिन जड़ी का प्रभाव होते-होते कैलाश की हालत बिगड़ने लगी। उसकी आँखें झपकने लगीं, चेहरा पीला पड़ गया, और वह धीरे-धीरे अचेत हो गया। डॉक्टर चड्ढा ने उसकी हालत देखकर कहा कि अब कुछ नहीं किया जा सकता।
छठा दृश्य: डॉक्टर चड्ढा का पश्चाताप
डॉक्टर चड्ढा के हृदय में पछतावा और दुख उमड़ आया। उन्होंने कहा, “मैंने कितनी बार कैलाश को समझाया कि साँप मत पालो। मैंने अपनी अक़्ल से काम नहीं लिया।” घर में कोहराम मच गया। कैलाश की माँ और मृणालिनी फूट-फूटकर रोने लगीं। डॉक्टर चड्ढा ने सोचा कि शायद उस दिन उन्होंने उस बूढ़े की मदद की होती, तो आज उनके अपने बेटे की जान बच जाती।
अंतिम दृश्य: अनकहा सत्य
मौत के लक्षण दिखाई देने लगे थे। मृणालिनी कैलाश के पास बैठकर उसकी उँगली से टपकते खून को पोंछ रही थी। कैलाश के चेहरे पर छाया मुरझाहट, आँखों में दर्द, और धीमी होती साँसें, सब कुछ कह रही थीं। डॉक्टर चड्ढा समझ गए थे कि जीवन के कुछ कड़े नियम केवल किताबों में नहीं होते, बल्कि इंसानियत में भी होते हैं।
उनका सारा यश, धन, और नियमित जीवनशैली बेकार साबित हो गई थी। जो कभी किसी ग़रीब बूढ़े की मदद करने से मुँह मोड़ता था, आज वही अपने बेटे की बेबसी को देख रहा था। जीवन की यह कठोर सच्चाई उनके सामने थी—धन और सफलता से अधिक महत्त्वपूर्ण है दया और मानवता।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी-कभी हमें अपने नियमों और सीमाओं से बाहर आकर दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि जीवन में करुणा और दया सबसे बड़ी शक्तियाँ हैं।
स्रोत :
- पुस्तक : मानसरोवर (भाग-5) (पृष्ठ 250)
- रचनाकार : प्रेमचंद
- प्रकाशन : सरस्वती प्रेस, बनारस
- संस्करण : 1948