बलिदान (मुंशी प्रेमचन्द)

कहानी का परिचय

प्रेमचंद की कहानी ‘बलिदान’ एक किसान परिवार की कठिनाइयों और उनके त्याग की भावना पर आधारित है। यह कहानी एक ऐसे किसान की है, जिसकी आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद, समाज में उसका सम्मान भी घटता जाता है। यह कहानी श्रमिक और कृषक वर्ग की सच्चाई को उजागर करती है।


हरखचन्द्र से हरखू बनने की कहानी

हरखचन्द्र कुरमी, जो कभी एक समृद्ध किसान था, अपनी खेती-बाड़ी में कई हल चलवाता था। लेकिन समय के साथ उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और लोग उसे हरखू कहने लगे। अब उसके पास केवल पाँच बीघा जमीन, दो बैल और एक हल बचा था।


हरखू की बीमारी और अंतिम समय

हरखू जब सत्तर साल का हुआ, तो उसकी सेहत भी गिरने लगी। इस साल वह बीमार पड़ा और उसके बेटे गिरधारी ने आयुर्वेदिक इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गाँव के कुछ लोगों ने उसे अंग्रेजी दवा की सलाह दी, लेकिन हरखू ने दवाएँ लेने से इनकार कर दिया और पाँच महीने की बीमारी के बाद उसने अपने प्राण त्याग दिए। गिरधारी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ किया।


कर्ज़ और बैल बेचने की मजबूरी

गिरधारी पर गाँव के तुलसी बनिया का कर्ज़ बकाया था। बनिया ने रुपये न देने पर गिरधारी को धमकाया। गाँव के ही मंगलसिंह ने उसके बैल औने-पौने दामों में खरीद लिए। जब बैलों को ले जाया गया, तो गिरधारी बहुत रोया और उसकी पत्नी सुभागी भी अपने आँसू नहीं रोक पाई।


गिरधारी का घर छोड़ना

बैलों को बेचने के बाद गिरधारी टूट चुका था। उस रात उसने कुछ भी नहीं खाया और घर छोड़कर कहीं चला गया। गाँववालों ने उसे ढूँढने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिला।


गिरधारी की आत्मा का प्रकट होना

अगले दिन सुभागी को गिरधारी बैलों की नाँद के पास दिखाई दिया, लेकिन जैसे ही वह पास पहुँची, गिरधारी गायब हो गया। कुछ दिन बाद, गाँव का एक किसान कालिकादीन जब गिरधारी के खेत में हल चलाने गया, तो उसने गिरधारी को खेत की मेड़ पर खड़ा देखा। जैसे ही वह उसके पास गया, गिरधारी कुएँ में कूद गया।


गिरधारी का गाँव में डर

अब छह महीने हो चुके हैं, गिरधारी का कोई पता नहीं चला है। उसका बेटा ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करता है और गाँव में किसी का भी सम्मान नहीं पाता। गाँव वाले मानते हैं कि गिरधारी की आत्मा अब भी उसके खेत में आती है और रोती है। लोग उसके खेत के पास जाने से भी डरते हैं, और उसका नाम लेने में भी कतराते हैं।


निष्कर्ष

‘बलिदान’ एक ऐसी कहानी है, जो दर्शाती है कि किस तरह आर्थिक कठिनाइयों से न केवल इंसान की संपत्ति छिन जाती है, बल्कि उसका आत्म-सम्मान भी। यह कहानी समाज की कठोर सच्चाई और परिवार के बलिदान को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है।

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